इजराइल: ने लगभग 200 युद्धक विमान उड़ाकर ईरान पर हमला किया। इजराइली वायुसेना ने देशभर में लगभग 100 ठिकाने तय किए थे, जहां उसने एक साथ लगभग 330 बम गिराकर उनके परमाणु कार्यक्रम से जुड़े केंद्रों, हथियार कारखाने और सैन्य सुविधाओं पर हमला किया। इजराइली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने साफ किया कि यदि ईरान ने परमाणु कार्यक्रम नहीं रोका, तो इसका असर पूरे मध्य पूर्व पर होगा — इजराइल इसका मुकाबला हर कीमत पर करेगा।
इजराइल ने हमले से पहले अमेरिका सहित मुख्य साथियों को सूचित किया था, लेकिन हमले के बाद अमेरिकी अधिकारियों ने साफ किया कि इस कार्रवाई में अमेरिका शामिल नहीं था। अमेरिका ने यह भी किया कि उसने इजराइल की योजना या हमले का समर्थन नहीं किया, साथ ही शांति बनाए रखने की अपील भी किया। इसका मतलब यह हुआ कि इजराइल ने यह हमला एकतरफा किया, बिना अमेरिका की औपचारिक सहमति या समर्थन लिए हुए।
अब हर कोई इसका इंतजार कर रहा है कि ईरान इसका जवाब किस तरह देता है।
ईरान ने पहले ही साफ किया था कि यदि इजराइल ने उनके परमाणु कार्यक्रम या राष्ट्रीय सुरक्षा पर हमला किया, तो इसका पलटवार किया जाएगा। पलटवार मिसाइल हमलों, ड्रोन हमलों या मध्य पूर्व स्थित इजराइली या अमेरिकी सुविधाओं पर हमलों की शक्ल ले सकता है। साथ ही ईरान हिज़्बुल्लाह या हमास जैसे संगठनों का समर्थन अधिक सक्रिय रूप से कर सकता है, ताकि इजरायल पर अधिक दबाव बनाया जा सके।
भारत ने इस घटनाक्रम पर चिंता जाहिर किया है, साथ ही शांति बनाए रखने की अपील किया है। इसका मुख्य असर कच्चे तेल की कीमतें बढ़ने, शिपिंग मार्ग असुरक्षित होने और मध्य पूर्व से होने वाली ऊर्जा आपूर्ति प्रभावित होने पर होगा, जो भारतीय अर्थव्यवस्था पर असर डाल सकता है। साथ ही इस तनाव ने भारत सरकार की सुरक्षा एजेंसियों की चिंताएँ भी बढ़ा दी हैं, कि इसका असर आंतरिक सुरक्षा या विदेशियों पर हमलों तक फैल सकता है।
इजरायल ने साफ किया है कि परमाणु कार्यक्रम उनके लिए “लाल रेखा” है, जिसके साथ कोई समझौता नहीं किया जाएगा। इसका मतलब हुआ कि मध्य पूर्व अधिक असंतुलित रहेगा, शांति प्रयास मुश्किल होंगे, और बाहरी शक्तियों, जैसे अमेरिका, रूस, यूरोपीय संघ या संयुक्त राष्ट्र, पर इसका असर डालने या शांति प्रयास करवाने का अधिक भार होगा।
अब नजरें इरान की प्रतिक्रिया पर टिकी हैं – पलटवार आया, तो तनाव अधिक फैलने की संभावना रहेगी। इसका असर न केवल मध्य पूर्व पर होगा, बल्क़ि इसका प्रभाव पूरे विश्व, विशेष रूप से तेल कीमतें, सुरक्षा व्यवस्था और भू-राजनीति पर भी पड़ेगा।
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