प्रधानमंत्री मोदी का साइप्रस दौरा: तुर्किये को कड़ा संदेश, पाकिस्तान के 'दोस्त' को झटका देने की तैयारी

प्रधानमंत्री: नरेंद्र मोदी के साइप्रस दौरे को एक महत्वपूर्ण कूटनीतिक कदम के तौर पर देखा जा रहा है, जिसका सीधा संदेश भारत के 'ऑपरेशन सिंदूर' के बाद से तनावपूर्ण संबंधों वाले तुर्किये को है। यह 23 साल में किसी भारतीय प्रधानमंत्री का पहला साइप्रस दौरा है, जो तुर्किये और पाकिस्तान के बीच बढ़ती सैन्य भागीदारी की पृष्ठभूमि में विशेष मायने रखता है।

 

ऑपरेशन सिंदूर और तुर्किये का रुख: संबंधों में खटास

'ऑपरेशन सिंदूर' के बाद से भारत और तुर्किये के संबंधों में थोड़ी खटास आई है। दरअसल, तुर्किये ने न केवल पाकिस्तान को ड्रोन मुहैया कराए थे, बल्कि इस मुद्दे पर पाकिस्तान का खुलकर समर्थन भी किया था। यह सैन्य सहयोग और स्पष्ट समर्थन भारत के लिए चिंता का विषय रहा है। अब प्रधानमंत्री मोदी का साइप्रस दौरा, जिसे तुर्किये के लिए एक स्पष्ट संदेश के तौर पर देखा जा रहा है, इस भू-राजनीतिक खेल में एक नई परत जोड़ता है।

 

साइप्रस दौरे का महत्व: तुर्किये के लिए संदेश

प्रधानमंत्री मोदी रविवार को तीन देशों के दौरे पर रवाना हुए, जिसमें पहला पड़ाव साइप्रस है। यह दौरा तुर्किये को एक मजबूत कूटनीतिक संदेश देने के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण माना जा रहा है। तुर्किये पर आरोप है कि उसने 1974 से साइप्रस के एक तिहाई हिस्से पर कब्जा कर रखा है। तुर्किये और साइप्रस के बीच लंबे समय से दुश्मनी है और 1974 के बाद से दोनों देशों के बीच कोई राजनयिक संबंध भी नहीं हैं। ऐसे में, भारत का साइप्रस के साथ संबंधों को मजबूत करना, तुर्किये के लिए एक सीधा संकेत है कि भारत अपने हितों की रक्षा के लिए नए रणनीतिक गठबंधन बनाने से हिचकिचाएगा नहीं।

तुर्किये और साइप्रस विवाद की जड़ें

तुर्किये और साइप्रस के बीच विवाद की जड़ें इतिहास में गहरी हैं। 1570 में ग्रीक भाषी साइप्रस ओटोमन साम्राज्य के नियंत्रण में आ गया, जिसके बाद बड़ी संख्या में तुर्की भाषी लोग भी साइप्रस में बस गए। 1960 में जब साइप्रस ब्रिटेन से स्वतंत्र हुआ, तब ग्रीक भाषी आबादी लगभग तीन चौथाई थी, जबकि तुर्की भाषी आबादी भी पर्याप्त संख्या में मौजूद थी। आजादी के बाद कई वर्षों तक इन समुदायों में आपसी झगड़े और हिंसा देखने को मिली।

जुलाई 1974 में, ग्रीस की सैन्य सरकार ने साइप्रस को ग्रीस में मिलाने की कोशिश की। इसके जवाब में, तुर्किये ने साइप्रस पर हमला कर दिया और उत्तरी शहर काइनेरिया तथा राजधानी निकोसिया के कई इलाकों पर कब्जा कर लिया। संयुक्त राष्ट्र में वार्ता विफल होने के बाद, अगस्त में तुर्किये ने फिर से साइप्रस पर हमला किया और कई और इलाकों पर कब्जा कर लिया। नतीजतन, साइप्रस के एक तिहाई हिस्से पर आज भी तुर्किये का कब्जा है। संयुक्त राष्ट्र ने बाद में बफर जोन बनाकर युद्धविराम कराया। तुर्किये के कब्जे वाले इलाके को उत्तरी साइप्रस कहा जाता है, जिसे साइप्रस की सरकार अपना ही हिस्सा मानती है। यह विवाद दोनों देशों के बीच तनाव का मुख्य कारण बना हुआ है, जिसमें तुर्किये द्वारा उत्तरी साइप्रस के आसपास ड्रिलिंग के प्रयासों का साइप्रस द्वारा लगातार विरोध किया जाता रहा है।

उच्च स्तरीय दौरे और मजबूत होते संबंध

प्रधानमंत्री मोदी साइप्रस जाने वाले तीसरे भारतीय प्रधानमंत्री हैं। इससे पहले 1983 में इंदिरा गांधी और 2002 में अटल बिहारी वाजपेयी ने इस देश का दौरा किया था। हालांकि भारत और साइप्रस के कूटनीतिक रिश्ते हमेशा मजबूत रहे हैं, उच्चस्तरीय दौरे कम ही हुए हैं। हाल के वर्षों में, राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने 2018 में और विदेश मंत्री एस जयशंकर ने 2022 में साइप्रस का दौरा किया है, जो दोनों देशों के बीच बढ़ते संबंधों को दर्शाता है। पीएम मोदी का यह दौरा इन संबंधों को और मजबूत करेगा और अंतरराष्ट्रीय मंच पर भारत की रणनीतिक स्थिति को मजबूती प्रदान करेगा। यह दौरा न केवल तुर्किये और पाकिस्तान को एक स्पष्ट संदेश देगा, बल्कि भूमध्यसागरीय क्षेत्र में भारत के प्रभाव को भी बढ़ाएगा।

Written By

Monika Sharma

Desk Reporter

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